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हिंदी दिवस की कविताएं


कविता--पतझड़

कोने का वह ठूंठ
आज भी खड़ा है वहां
उम्मीद आसमान से
कभी तो होगी हरियाली
उसमें भी,
हवा रुखी सी चली
साँसों में धूल चली
धूल के गुबार में वह ठूंठ
फिर से मतिभ्रम हो गया

हवाओं ने रुख अपना मोड़ा
अब न होता यहां सबेरा
हरियाली रुठी इस बसेरे से
कंक्रीट के दिल भी बन गए..!!

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सीमा..✍️💕
©®
#लेखनी हिंदी दिवस प्रतियोगिता

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6 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ, रूखी,, रूठी होना चाहिए जी

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Swati chourasia

20-Sep-2022 07:57 PM

बहुत खूब 👌

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Kavita Jha

18-Sep-2022 08:53 AM

वाह क्या बात 👌👌

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